आर-II सुरजन सिंह

सुरजन सिंह

आर-II सुरजन सिंह

(03/07/1979 - 24/09/2002)

नंबर 4081190एन, आर-II सुरजन सिंह का जन्म 03 जुलाई, 1979 को उत्तराखण्ड के जिला- चमोली के गांव रानौउ में हुआ था । वे 30 दिसम्बर 2001 को 51एसएजी, एनएसजी में शामिल हुए थे । 24 सितम्बर, 2002 को आर-।। सुरजन सिंह अक्षरधाम स्वामी नारायण मंदिर, गांधीनगर, गुजरात में भक्तों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए एनएसजी टास्क फोर्स का हिस्सा थे । मंदिर में लगभग 1000 भक्त फंसे हुए थे । टास्क फोर्स ने मुख्य मंदिर परिसर के बाहर आतंकवादियों के होने का पता लगाया । आतंकवादी आड़ और अंधेरे में मोर्चा लिए हुए थे जबकि एनएसजी कर्मियों के पास कोई आड़ नहीं थी । हमारे जवानों को आगे बढ़ने और आंतकवादियों को बेअसर करने के लिए आतंकवादियों को बाध्य करना जरुरी था । आर-।। सुरजन सिंह स्काउट के रुप में स्वेच्छा से आगे आए और अपने स्क्वाड्रन कमांडर, आईसी-52640 वाई मेजर तुषार जोशी से आगे बढ़ने लगे । उसने अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना आगे बढ़ने के लिए नंबर 3 दस्ते की सहायता के लिए आतंकवादियों पर सटीक गोलीबारी की । वे रेंगकर आतंकवादियों के करीब जा पहुंचे और उन्हें गोलीबारी में उलझा दिया । आंतकवादियों ने उन पर भारी जवाबी गोलीबारी की । इस कार्रवाई में स्क्वाड्रन कमांडर के चेहरे पर छर्रे की चोटें लगी । आर-।। सुरजन सिंह ने तत्काल मेजर जोशी को अपने शरीर से कवर किया । इस प्रक्रिया में उसे खुद गोली के छर्रों से काफी चोटें लगीं । अपनी चोटों के बावजूद आर-।। सुरजन सिंह आतंकवादियों को एक ही जगह रोके रखने और उन्हें भागने से रोकने के लिए गोलीबारी करते रहे और लगातार ग्रेनेड फेंकते रहे । स्व0 सहा0कमां-। सुरेश चंद यादव को बाहर निकालने में अपने जीवन को दांव पर लगाते हुए नं0 3 दस्ते को कवर करने के लिए उन्होंने गोलीबारी जारी रखी । उसके बाद उसने एक आतंकवादी के हथियार की फ्लैश को देखा तो उसने अपनी कारबाइन से गोलियों की बौछार शुरु कर दी । आतंकवादी ने भी जवाबी गोलीबारी की और आर-।। सुरजन सिंह के सिर पर गोलियां लगी । गिरने के बाद भी अदम्य साहस का परिचय देते हुए बेहोश होने तक उन्होंने अपने हथियार को नहीं छोड़ा । 25 सितम्बर, 2002 को "ऑपरेशन वज्र शक्ति" के दौरान उन्होंने व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह किए बिना अदम्य साहस, दल भावना और बहुत ही उच्च स्तर के कर्तव्य के प्रति समर्पण की भावना का परिचय दिया । वीरता के इस कार्य के लिए उन्हें कीर्ति चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया । उनके परिवार में पिता श्री ध्रुव सिंह और माता श्रीमती सुरेशी देवी हैं ।